“Shiv Tandav Stotram” लंकापति रावण द्वारा बोली गई है। शिव तांडव को पढ़ने मात्र से ही मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। शिव तांडव मनुष्य के हर प्रकार के रोग, द्वेष और भय को दूर करता है। जो मनुष्य महादेव की उपासना करता है वह जीवन और मृत्यु के कालचक्र से मुक्त हो जाता है।
शिव तांडव के पीछे एक पौराणिक कहानी है। एक बार लंकापति रावण ने शनिदेव को अपनी शक्ति और बल का साहस दिखाने के लिए कैलाश पर्वत को उठाकर लंका ले जाने की कोशिश की, जब रावण कैलाश पर्वत को उठाने लगे तो उस समय शिव शंकर अपने ध्यान में थे और कैलाश पर्वत को जगमगाता देख भोलेनाथ को क्रोध आ गया।
जब भोलेनाथ की आंख खुली तो उन्होंने देखा लंकापति रावण कैलाश पर्वत को उठाने की कोशिश कर रहे हैं। भोलेनाथ ने अपने पांव के अंगूठे मात्र को कैलाश पर्वत पर रखकर उसे स्थिर कर दिया, जिसके कारण रामायण के हाथ कैलाश पर्वत के नीचे दब गए और वह दर्द से तड़पने लगा, ठीक उसी समय दर्द में तड़पते हुए रावण के मुख से यह शिव तांडव स्तोत्र निकला और भोलेनाथ रावण की इस भक्ति से प्रसन्न होकर तांडव करने लगे। और तभी से लंकापति रावण का नाम “रावण” पड़ा।
इस ग्रह “पृथ्वी” पर हर इंसान के लिए यह बहुत ही अच्छा है, अगर वह अपने जीवन में एक भर भी Shiv Tandav Stotram को पढता है तो। आपको पता होगा की रावण एक “असुर” थे मगर वह शिव भगत होने के साथ-साथ एक बहुत बड़े “ज्ञानी” भी थे जिस लिए उनको “पंडित” भी कहा जाता था।
भगवान शिव शंकर के इस स्तोत्र को पढ़ने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों पर कृपा बनाएं रखते हैं। Shiv Chalisa भी पढ़ें।
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संस्कृत में शिव तंदव स्टोट्रम (Shiv Tandav Stotram in Sanskrit)
||सार्थशिवताण्डवस्तोत्रम् ||
जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||
जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||
धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||
लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||
सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||
ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||
कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम ||
नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||
प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||
अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||
जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||
स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||
कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||
इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||
पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्
Shiv Tandav Stotram Video By Varsha Dwivedi |
एक बात समझ नही आ रहा है।
“पावित स्थले” या “पवित्र स्थले” आएगा शुरु के पहले लाईन मे? “पावित” क्या होता है?
देव्लांस जी आप का धन्यवाद, सर् “पावित” का मतलब “पवित्र” होता है.
Dhanyawad sir samjhane k lye
पावित का अर्थ ही पवित्र होता है भाई ।
पावित संस्कृत शब्द है और पवित्र संस्कृत और हिन्दी दोनों है पवित्र को तत्सम के रूप में हिन्दी में भी लिया गया है परन्तु पावित सिर्फ संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ पवित्र होता है ।
और इसमें पावितस्थले शिव जी के पवित्र कंठ को कहा गया है ।
उसमें प्रवाह का मतलब प्रवाहित है भाई प्रवाह शब्द उसमें दिया है ।
धन्यवाद आकाश तिवारी जी, जो आपने इतने विस्तार में समझाया।
ॐ नमः शिवाय।
ऊँ नमः शिवाय
Har Har mahadev
jay maha kal kailash parvat kaha hai
nice beautiful song
I like this
I try to learn
Thanks for this
wao wao waoooo…..
I Liked it
I Liked it….
kitana shaktivardhak stotram hai
Pandit Ravan Guru ko moorimoori dhanyawad .